नागसेन कश्मीर में जन्मे श्रावस्तीवदन बौद्ध थे, जो 150 ईसा पूर्व के आसपास हुए. उत्तर पश्चिम भारत में उस समय भारतीय यूनानी राजा मिनाण्डर का शासन था. इस राजा का नाम प्राचीन पालि ग्रंथों में मिलिन्द मिलता है. कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि मिलिन्द ने बौद्ध धर्म के बारे में गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए नागसेन से काफी सवाल पूछे थे और नागसेन के जवाबों से प्रभावित होकर मिलिन्द बौद्ध हो गया था. लेकिन रोचक पहलू तो यह है कि जब आपको पता चले कि नागसेन नाम का ऐसा कोई बौद्ध भिक्षु था ही नहीं!
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क्या है यह रहस्य?क्या सचमुच नागसेन नाम का कोई भिक्षु नहीं था? या फिर यह किसी मायावी की कहानी है? इस सवाल के जवाब में दो तरह से बात होती है. पहले तो यही कि मिलिन्दपन्हो ग्रंथ में नागसेन के बारे में कुछ जानकारियां मिलती हैं. इनके मुताबिक नागसेन ने महान बौद्ध भिक्षु धर्मरक्षित से त्रिपिटक का ज्ञान हासिल किया था . पटना के पास यह ज्ञान लेने के साथ ही नागसेन अर्हत बने थे. बौद्ध परंपरा में अर्हत उसे कहते हैं जो अपने अस्तित्व को पहचान पाता है और निर्वाण की अवस्था को प्राप्त कर लेता है.

केबीसी प्रतियोगी और विद्यार्थी मंगलम कुमार से एक करोड़ रुपये के लिए यह प्रश्न पूछा गया.
मिलिन्दपन्हो के अलावा कुछ और बौद्ध साहित्य में भी नागसेन का उल्लेख मिलता है जैसे उनके पिता का नाम सोनुत्तर था और गुरु का नाम रोहन, असगत्त और वत्तनिया था जबकि आयुपाला उनकी गुरुमाता थीं. बौद्ध धर्म की महायान शाखा के 18 अर्हतों में से एक नागसेन भी माने जाते हैं. प्राचीन चित्रों में इन्हें एक हाथ में खख्खर और दूसरे हाथ में एक चादरनुमा तंगका ओढ़े हुए दिखाया गया. कुछ आधुनिक शिल्पों में नागसेन के कान में एक लकड़ी फंसी दिखाई गई जिसका प्रतीक अर्थ यह है कि बौद्ध भिक्षु को बेकार की बातें नहीं सुनना चाहिए बल्कि हमेशा सच सुनने को तैयार रहना चाहिए.
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अब नागसेन से जुड़ा दूसरा पहलू यह है कि उन्हें एक चेतना माना जाता है. दुनिया के पवित्र लोगों से जुड़े क्रॉस कल्चरल एनसाइक्लोपीडिया में नागसेन के बारे में कहा गया है कि वह वास्तविक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि राजा मिलिन्द के मन में जो संदेह उठे थे, उन्हें दूर करने के लिए एक चेतना के तौर पर नागसेन प्रकट हुए और मिलिन्द के मन को शांत करने के बाद गायब हो गए. यह कारण भी बताया गया है कि उसके बाद नागसेन का इतिहास नहीं मिलता और मिलिन्द से संवाद के पहले भी नागसेन का इतिहास बहुत नहीं है, बस किंवदंतियां ज़्यादा हैं.
नागसेन से जुड़े रोचक फैक्ट्स
कहा जाता है कि नागसेन भारत से थाईलैंड तक गए थे. इस किंवदंती के मुताबिक पटना का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था, जहां 43 ईसा पूर्व के समय में पहली बार रत्नजड़ित बुद्ध मूर्तियां रची गई थीं, जिनमें बुद्ध पद्मासन में ध्यान लगाए दिखते हैं. नागसेन इन मूर्तियों को लेकर थाईलैंड पहुंचे थे और तबसे वहां इस तरह की बुद्ध प्रतिमाओं की परंपरा शुरू हुई.

एमराल्ड बुद्ध प्रतिमा अक्सर सुनहरी होती हैं और रत्नों से जड़ित भी.
नागसेन के जो भी विवरण मिलते हैं, वो सिर्फ मिलिन्दपन्हो ग्रंथ में हैं. इस ग्रंथ में राजा और नागसेन के बीच संवाद के बड़े अद्भुत और रोचक किस्से भी हैं. उनमें से दो प्रचलित और जानने लायक प्रसंग आपको बताते हैं.
नागसेन और रथ की कहानी
बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को समझने के लिए इस दिलचस्प कहानी का ज़िक्र अक्सर किया जाता है. जब मिलिन्द ने बौद्ध भिक्षु का नाम पूछा तो नागसेन ने अपना नाम बताकर कहा कि ‘राजन, यह मात्र नाम है, यह मैं नहीं हूं.’
कन्फ्यूज़ हुए मिलिन्द ने उनसे पूछा: ‘भन्ते, आप इस राजमहल तक आए कैसे?’
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नागसेन ने रथ की तरफ इशारा किया और मिलिन्द से पूछा कि रथ क्या होता है, तो मिलिन्द ने भी इशारे से उन्हें रथ दिखाया. तब नागसेन ने मिलिन्द को समझाया.
“राजन, रथ कुछ वस्तुओं का संग्रह है जैसे पहिये और आसन आदि. मैं भी इसी तरह कई चीज़ों से मिलकर बना हुआ हूं, जिसका नाम नागसेन है. जैसे रथ में आसन, पहिये, लगाम और घोड़े होते हैं उसी तरह मनुष्य के पास सिर, भुजाएं, हृदय, फेफड़े और पैर आदि अंग होते हैं. मनुष्य इन सभी का स्वामी भी होता है लेकिन समझने की बात यह है कि मनुष्य तभी तक अस्तित्व में रहता है, जब तक ये सभी अंग मिलकर अपना काम करते हैं. इन अंगों से अलग होकर कोई आत्मा नहीं होती.”

राजाा मिलिन्द और नागसेन के बीच बातचीत का चित्र विकिकॉमन्स से साभार.
जब दोनों के बीच हुई थी तनातनी!
मिलिन्द और नागसेन के बीच संवाद में शुरू में ही कुछ खिंचाव हुआ था और तब एक रोचक प्रसंग आता है. मिलिन्द ने एक पहेली का उत्तर मिलने के बाद नागसेन से कहा कि क्या वो और बातचीत करेंगे? तब नागसेन ने कहा ‘अगर राजन एक विद्वान की तरह बात करेंगे तो और बात होगी, लेकिन राजा की तरह पेश आएंगे तो नहीं’. इसके बाद मिलिन्द ने नागसेन से दोनों स्थितियों का अंतर जानना चाहा तो नागसेन ने बताया:

इस जवाब के बाद मिलिन्द ने कहा था कि वो विद्वान की भांति ही चर्चा करेंगे और नागसेन उनसे डरे बगैर बात करें.