क्यों बेची जा रहीं इमारतें
कोरोना काल में देशों की अर्थव्यवस्था तो चरमराई ही, इसका असर शैक्षणिक संस्थानों पर भी हुआ. स्कूल लंबे समय से या तो बंद हैं या खुलकर संक्रमण फैलने पर दोबारा बंद हो चुके. पढ़ाई ऑनलाइन करनी पड़ी. ऐसे में स्कूल प्रशासन अपनी इमारतों का भी खर्च पूरा नहीं कर पा रहा. ये देखते हुए कई स्कूल अपनी इमारतें बेच रहे हैं.
17 स्कूल खरीदे चीन ने इन्हीं घाटे में आ चुके स्कूलों को चीन धड़ल्ले से खरीद रहा है. ऐसा एक-दो स्कूलों के साथ नहीं, बल्कि पूरे 17 स्कूलों के साथ हो चुका है. इन स्कूलों को पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से संबंध रखने वाली कंपनियों ने सस्ते दामों पर खरीद लिया है और अब कोरोना काल खत्म होने के इंतजार में हैं.

स्कूल लंबे समय से या तो बंद हैं या खुलकर संक्रमण फैलने पर दोबारा बंद हो चुके- सांकेतिक फोटो
पहले ही हो चुकी शुरुआत
वैसे कोरोना से पहले भी चीन ब्रिटिश स्कूलों को खरीदना शुरू कर चुका था. इसकी वजह ब्रिटिश मुद्रा पाउंड में आई गिरावट थी. दूसरी ओर चीनी अर्थव्यवस्था तेजी से ऊपर की ओर गई. ऐसे में घाटे में चलती स्कूली इमारतों को खरीदना आसान हो गया.
अपनी विचारधारा बच्चों के जेहन में डालेगा
माना जा रहा है कि इसके बाद सही समय आने पर चीन इस स्कूलों को शुरू करेगा और अपनी विचारधारा थोपेगा. इससे ब्रिटिश या इन स्कूलों में आने वाले विदेशी बच्चे शुरुआत से ही चीन समर्थक हो जाएंगे. चीन की इस विचारधारा के पीछे महज कयास नहीं, बल्कि पहले भी चीन ऐसा करता आया है.
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ऐसे हो रही पैठ
चीन के कन्फ्यूशियस इंटरनेशनल एजुकेशन ग्रुप ने ब्रिटेन का वो स्कूल खरीद लिया, जहां राजकुमारी डायना ने पढ़ाई की थी. एक ब्रिटिश स्कूल को चीन की यांग हुइयान ने खरीदा है. वह एशिया की सबसे अमीर महिला हैं और उसके पिता यांग गुओकियांग चीन कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) के सदस्य हैं. कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट चीन की खास विचारधारा को चलाने वाला स्कूल है, जो ब्रिटेन के 150 स्कूलों में चलाया जा रहा है. साथ ही ये ब्रिटेन की 29 यूनिवर्सिटी तक पहुंच चुका है.

सही समय आने पर चीन इस स्कूलों को शुरू करेगा और अपनी विचारधारा थोपेगा- सांकेतिक फोटो
क्या है कन्फ्यूशियस संस्थान
ये चीनी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देते हुए किसी खास राज्य या देश में पैठ बना लेते हैं. इसके लिए वे फंडिंग का सहारा लेते हैं. वे घाटे में दिखते स्कूल-कॉलेजों को फंड करते हैं और फिर वहां की कमेटी में घुसपैठ कर लेते हैं. ये सांस्कृतिक लेनदेन की बात करते हैं लेकिन धीरे-धीरे ये होस्ट यूनिवर्सिटी की पढ़ाई-लिखाई में सीधा दखल देने लगते हैं. चूंकि ये काफी पैसे देते हैं इसलिए संस्थान इन्हें अलग भी नहीं कर पाते हैं. हालांकि बीते कई सालों से ये अपनी पॉलिसी और तौर-तरीकों को लेकर विवादों में रहे.
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ये चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के नाम पर आधारित हैं. वैसे तो पहले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इस दार्शनिक की आलोचना किया करती थी लेकिन बाद में उसे दुनिया के दूसरे देशों से जुड़ने का यही सबसे सीधा जरिया लगा. असल में कन्फ्यूशियस का दर्शन दूसरे देशों के लिए काफी जाना-पहचाना है और चीन की सरकार को लगा कि उनका नाम ब्रांड इमेज के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इसी तरह से कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूशन की शुरुआत हुई.

चीन के कन्फ्यूशियस इंटरनेशनल एजुकेशन ग्रुप ने ब्रिटेन का वो स्कूल खरीद लिया, जहां राजकुमारी डायना ने पढ़ाई की- सांकेतिक फोटो
पहला इंस्टीट्यूट साउथ कोरिया में साल 2004 में खुला. इसके बाद से दुनिया के बहुत से विकसित और मध्य आय वाले देशों में ये संस्थान पहुंच चुका है. लेकिन अब विकसित देशों जैसे ब्रिटेन में ये घुसपैठ कर रहा है. एक अनुमान के मुताबिक साल 2019 में दुनियाभर के देशों में 530 कन्फ्यूशियस संस्थान बन चुके थे.
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पहले कनफ्यूशियस संस्थानों की तुलना कई सारे विदेशी संस्थानों जैसे ब्रिटिश काउंसिल, अलायंस फ्रेंचाइस जैसों से होती रही लेकिन जल्दी ही लोगों को समझ आने लगा कि चीन से आए इन संस्थानों का इरादा केवल भाषा और संस्कृति के बारे में बोलना-बताना नहीं, बल्कि युवाओं को अपने प्रभाव में लाना भी है.
BREAKING
Chinese billionaires with direct links to the CCP are buying up British schools — and flooding the curriculum with their propaganda.This Communist takeover of our education system must be stopped. pic.twitter.com/3KsmUKIzev— Nigel Farage (@Nigel_Farage) February 20, 2021
ब्रिटिश अधिकारी अब जता रहे चिंता
खुद ब्रिटिश शिक्षाविद और अधिकारी चीन की अपने स्कूलों में घुसपैठ पर परेशान हो रहे हैं. ब्रिटेन में रिफॉर्म पार्टी के नेता नाइजेल फेरेंज ने इस स्कूलों के चीनी टेकओवर पर चिंता जताते हुए कहा कि ये ट्रेंड साल 2014 से चुपके-चुपके शुरू हुआ और अब धड़ल्ले से बढ़ा है. ब्रिटेन के लगभग 7 प्रतिशत बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं. चीन इन्हीं निजी स्कूलों को खरीद रहा है. ऐसे में ये आशंका बढ़ जाती है कि जल्द ही बच्चों के मन में चीनी विचारधारा ठूंसी जाने लगेगी.