
2014 में शपथ ग्रहण से पहले मोदी ने मुखर्जी से मांगा था हफ्ते भर का वक्त.
प्रणब मुखर्जी (Pranab Mukherjee) के संस्मरणों को पढ़ने के बाद पता चलता है कि नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और मुखर्जी भले ही अलग अलग विचार धाराओं के हों लेकिन मुखर्जी के मन में पीएम मोदी और देश के प्रति उनके समर्पण को लेकर बहुत सम्मान है.
- News18Hindi
- Last Updated:
January 7, 2021, 10:07 AM IST
अपने संस्मरण में प्रणब मुखर्जी में बताया है कि चुनाव जीतने के बाद जब नरेंद्र मोदी पहली बार तात्कालिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने पहुंचे तो एक अखबार की कटिंग अपने साथ लेकर आए. अखबार की इस कटिंग में मुखर्जी का एक पुराना भाषण था जो राजनीतिक रूप से स्थिर जनादेश की उम्मीद व्यक्त करता था. प्रणब मुखर्जी ने अपने संस्मरण में बताया है कि पीएम मोदी ने मुलाकात के दौरान शपथ ग्रहण के लिए एक सप्ताह का समय मांगा. मोदी की ये बात सुनकर वो हैरान थे. बाद में नरेंद्र मोदी ने उनसे कहा कि वे गुजरात में अपने उत्तराधिकारी का मुद्दा सुलझाना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें थोड़ा समय चाहिए.
मुखर्जी की किताब से पता चलता है कि विदेश नीति पर नरेंद्र मोदी की पकड़ से वह काफी प्रभावित थे. प्रधानमंत्री मोदी ने कई बाद विदेश नीति पर मुखर्जी से सलाह भी ली थी. यहां तक की अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क नेताओं को बुलाने के बारे में भी उन्होंने मुखर्जी से बात की थी. पीएम मोदी की ये बात सुनकर मुखर्जी उनसे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इसके लिए उन्हें बधाई भी दी थी. इसके साथ ही मुखर्जी ने नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर आईबी प्रमुख से भी बात करने को कहा क्योंकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और श्रीलंका के राष्ट्रपति की सुरक्षा का मसला इससे जुड़ा हुआ था.इसे भी पढ़ें :- प्रणब मुखर्जी की किताब में दावा: अगर मैं वित्त मंत्री बना रहता तो ममता बनर्जी को UPA-2 का हिस्सा बनाए रखता पीएम मोदी ने मुखर्जी के बेहद सौहार्द्रपूर्ण संबंध थे
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि उनके कार्यकाल के दौरान उनके और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रिश्ते बेहद सौहार्द्रपूर्ण थे. उन्होंने बताया है कि जब कभी भी प्रधानमंत्री मोदी किसी मुद्दे पर उनसे सलाह लेते थे तब वह उन्हें सलाह देने से बिल्कुल भी नहीं हिचकते थे. उन्होंने लिखा है कि ऐसे कई मौके आए जिसे लेकर मैं चिंतित था और पीएम मोदी ने उन मुद्दों को उठाया. मुखर्जी ने लिखा, मुझे यह भी यकीन है कि वे विदेश नीति की बारीकियों को जल्दी समझने लगे.