Fast Fashion Exposed: “The Reality Behind Your Wardrobe!”

इस इमेज को ध्यान से देखिए। दूर से देखने पर लगेगा कि ये तो लैंडफिल hai कचरा है, pr ये कचरा नहीं, ये कपड़े हैं। यूएस के डेजर्ट में इतने कपड़े डंप होते हैं कि वो अब स्पेस से भी दिखता है। इस डेजर्ट लैंडफिल में कपड़े हैं, जिसे आप स्पेस से भी देख सकते हैं। इनमें कोई डिफेक्ट नहीं है। ये अच्छे खासे कपड़े हैं। इनमें प्रॉब्लम बस ये है कि इन्हें किसी ने नहीं खरीदा और फैशन इंडस्ट्री ने इन्हें रिजेक्ट कर दिया। ऐसा ही एक डंप कीनिया में भी है। मुझे यह समझ नहीं आता कि अच्छे खासे कपड़े फेंके क्यों जाते हैं। मैंने थोडा रिसर्च किया तो मुझे पता चला द डार्क ट्रूथ ऑफ फैशन कपड़े, फैशन लाइफस्टाइल। आज की दुनिया में इन चीजों की हद से ज्यादा कीमत है और ये कीमत चुकाने के लिए सिर्फ पैसे काफी नहीं। दुनिया के 10 परसेंट के लिए फैशन इंडस्ट्री जिम्मेदार है।

आज का विडियो इसी फैशन इंडस्ट्री के एक ट्रेंड के बारे में है जो हमारी पूरी दुनिया को डिस्ट्रॉय करने वाला है। बात हो रही है फास्ट फैशन की। क्या होता है फास्ट फैशन? इसका हमारी लाइफ पर क्या असर होता है और इससे हमें क्या फर्क पड़ता है? हम दुनिया के प्रॉब्लम को एक आसान भाषा में आपके सामने लाना चाहते हैं और उनके बारे में सलूशन भी डिसकस करना चाहते हैं। अगर आपको हमारी बातें अच्छी लगती है तो प्लीज चैनल को सब्सक्राइब या फॉलो करना ना भूलें। ये आपके लिए तो फ्री है लेकिन इससे हमारी बहुत होती है। क्या है फास्ट फैशन? आज ग्लोबल फैशन इंडस्ट्री ट्रिलियन डॉलर की हो चुकी है। दुनिया का सेकंड रिचेस्ट इंसान एक फैशन ब्रांड का मालिक है। अगर एक ग्राफ पर फैशन इंडस्ट्री की ग्रोथ को देखें तो एक ट्रेंड साफ दिखता है।

हंड्रेड से लेकर फिफ्टी तक। फैशन इंडस्ट्री काफी स्लोली ग्रो हुई। लेकिन पिछले 25 सालों में इंडस्ट्री हंड्रेड परसेंट से ग्रो हुई है। यह चमत्कार हुआ कैसे? फास्ट फैशन से। फास्ट फैशन यानी वो स्टाइल जो फास्ट मूव करते हैं, ट्रेंड में जल्दी आते हैं और उतनी ही जल्दी ट्रेंड से चले भी जाते हैं। ये पूरी तरह से एक वेस्टर्न कॉन्सेप्ट है। पहले फैशन के चार सीजन हुआ करते थे। स्प्रिंग समर ऑटम विंटर। वेस्टर्न देशों में वेदर के हिसाब से फैशन बदलता था। सिंपल गर्मी में कोट नहीं पहन सकते और विंटर्स में बॉक्सर्स पहनकर रास्तों पर नहीं घूम सकते। फैशन यूटिलिटी लेकिन आते आते ट्रेंड बदल गया। तीन महीनों बाद चेंज होने वाला फैशन कंपनी को काफी स्लो लगने लगा। अगर लोग तीन महीने बाद शॉपिंग करने लगे तो प्रॉफिट कैसे हुआ? इसलिए इंट्रोड्यूस हुआ फास्ट फैशन। इस कॉन्सेप्ट ने एक साल में चार सीजन से एक साल में 12 सीजन लाए। हर महीने नए फैशन शोज किए और नया नया स्टाइल इंट्रोड्यूस किया। ये मॉडल सुपर्ब था। ज्यादा स्टाइल से ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा प्रॉफिट और ज्यादा प्रॉफिट।

यानी कंपनी मालामाल। प्लान तो बढिय़ा है। वॉटसन एंड वुल्फ कहते हैं कि यूरोप में साल दो हज़ार के आसपास साल में दो फैशन कलेक्शन लॉन्च होते थे। दो हज़ार 11 में ये नंबर पांच कलेक्शन पर ईयर हो गया। अब एचएसएम जैसे ब्रांड 12 से 16 कलेक्शन हर साल लॉन्च करते हैं और जारा जैसे ब्रांड को 24 कलेक्शन यानी लिटल हर 15 दिनों में फैशन बदल दिए। लेकिन इस प्लान को सक्सेसफुल करने के लिए दो चीजें इंपॉर्टेंट थी। एक कि मैन्युफैक्चरर्स कपड़े जल्द से जल्द बनाएं और दूसरा कि कस्टमर्स कपड़े उतनी ही जल्दी डिस्कार्ड भी करें। आज इस सिस्टम की वजह से एक एवरेज अमेरिकन हर साल 30 किलोग्राम कपड़े कचरे में फेंक देता है।

एक और स्टडी कहता है कि एक एवरेज अमेरिकन साल में एक गारमेंट खरीदता है। हर साल नौ मिलियन टन टेक्सटाइल वेस्ट जेनरेट होता है, जिससे 1700 शून्य टाइटैनिक शिप भर जाएंगे और ये कपड़े कचरे में फेंके जा रहे हैं। इसलिए नहीं क्योंकि वो खराब है। ये कपड़े इसलिए फेंके जा रहे हैं क्योंकि वो फैशन में नहीं है। फर्स्ट पार्ट जो कंपनी ये कपड़े बनाती है वो इतनी इनसिक्योर होती है कि वो ये डिजाइन अपने राइवल के हाथ नहीं लगने देना चाहती तो वो इन अनसोल्ड कपड़ों को जला देते हैं। कुछ साल पहले एक रिपोर्ट आई थी कि जो एक बड़ा फास्ट फैशन रिटेलर है वो चीन से हर साल 12 टन कपड़े जलाता है। क्यों एक्सक्लूसिव मेंटेन करने के लिए नया स्टॉक आए तब शेल्फ पर पुराने कपड़े न दिखें। इसलिए ताकि लोगों को लगे कि उन्हें कपड़े अभी के अभी खरीदने हैं, नहीं तो वो आउट ऑफ फैशन यानी आउट ऑफ स्टोर चले जाएंगे। कई सारे ब्रांड न्यू भारत आते हैं सिर्फ फ्रेश होने के लिए। ये शॉर्ट फिल्म देखिए। यहां पर ऐसा दिखाया गया है कि पानीपत में नए नए कपड़े आते हैं और लोग इन्हें शेयर करते हैं ताकि उनसे धागा बन पाए। दुनिया में इतना सारा टेक्सटाइल वेस्ट या तो फेंक दिया जाता है या तो जला दिया जाता है।

इसका पर्यावरण पर बहुत बड़ा इम्पैक्ट होता है, जिसे छिपाया जाता है। चैप्टर टू फास्ट से भी फास्ट फैशन के इस वीडियो के पहले चैप्टर में हमने देखा कि कैसे कुछ कंपनीज एक साल में 15 15 बार फैशन बदलती हैं। लेकिन एक कंपनी है जो इस ट्रेंड को एक और स्टेप आगे ले गई। ये कंपनी उसी देश से है जो दुनिया के सारे प्रॉब्लम की जड़ है। बात चाइना की हो रही है और इस कंपनी का नाम है चीन में इस स्टार्टअप का। वैल्यूएशन हंड्रेड बिलियन डॉलर से भी ज्यादा था। अमेरिका में यह ऐप एमेजॉन से भी ज्यादा डाउनलोड हुआ। इनका बिजनेस मॉडल क्या है? एक चाइनीज कंपनी बस यही उसका बिजनेस मॉडल है।

अगर आप चाइना को जरा भी समझते हैं, तो आपके लिए चीन को समझना जरा भी मुश्किल नहीं होगा। चाइना में डेटा प्राइवेसी है ही नहीं। चीन इसी लूपहोल को एक्सप्लॉइट करता है। चीन इंटरनेट पर देखता है कि कौन से कपड़े ट्रेंड कर रहे हैं। फिर वैसे ही कपड़े सस्ते दामों में बनाता है और चाइना से ही सीधा वेस्टर्न देशों को बेचता है। कई छोटे डिजाइनर्स कहते हैं कि चीन कंपनी ने उनके डिजाइन चुराए हैं। लेकिन कंज्यूमर्स को इससे फर्क नहीं पड़ता कि कपड़े डिजाइन किसने किए हैं। क्या ओरिजनल डिजाइनर को उसकी मेहनत का फल मिल रहा है या नहीं। उन्हें बस इस बात से फर्क पड़ता है कि उन्हें कपड़े कितने सस्ते और कितने जल्दी मिलते हैं। लेकिन कपड़े सस्ते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि उसके पीछे कोई कॉस्ट नहीं। क्या आप आपके कपड़ों की सही कीमत जानते हैं? आपके कपड़ों की कीमत आपने नोटिस किया होगा कि पिछले कुछ सालों में कपड़ों की क्वॉलिटी बहुत ज्यादा खराब हो चुकी है। फास्ट फैशन वाली कंपनी को यह पता है कि उन्हें फास्ट कपड़े बनाने हैं, टिकाऊ कपड़े नहीं। कपड़े लंबे टिकेंगे तो फिर आप उन्हें जल्दी बदलने की सोचेंगे नहीं। फैशन कंपनी ने सोचा क्वालिटी कम कर ही रहे हैं तो लोगों को पता चल जाएगा। लोग हमारे कपड़े खरीदना बंद करेंगे तो उन्होंने कहा, कोई प्रॉब्लम नहीं, प्राइस भी कम कर देंगे ताकि लोगों को लगे कि इतने कम प्राइस में कपड़े मिल रहे हैं तो एक दो बार चल जाएंगे तो क्या फर्क पड़ता है। कपड़ों का प्राइस टैग तो कम हो सकता है, लेकिन उसके दूसरे प्राइस का क्या? कपड़े खरीदने के लिए सिर्फ पैसे खर्च नहीं होते, पानी भी खर्च होता है। फैशन इंडस्ट्री दुनिया की सेकंड लार्जेस्ट वॉटर कंज्यूमर इंडस्ट्री है। एग्जाम्पल एक कॉटन का टी शर्ट बनाने के लिए 2700 लीटर पानी खर्च होता है।

यह उतना ही पानी है जो एक इंसान ढाई साल में पीता है। एक जींस बनाने के लिए उतना ही पानी यूज होता है, जितना आप 10 साल में पिएंगे। यह है अलसी, जो कजाखस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच में एक लेख है। यह एक जमाने में दुनिया की लार्जेस्ट लेक में से एक हुआ करती थी। लेकिन आज यह लेक कंप्लीटली ड्राय हो चुकी है। रीजन इज फास्ट फैशन कॉटन एक वॉटर इंटेंसिव क्रॉप है, एक कैश क्रॉप है और कॉटन की खेती करने के लिए यहां के सारे पानी को इस्तेमाल किया गया है। कॉटन काफी नॉटी क्रॉप होता है। उसे वॉर्म कंडीशन पसंद सनशाइन पसंद है। इसलिए गर्म एरिया में कॉटन बनता है। लेकिन सेम टाइम कॉटन को बहुत सारे मॉइश्चर की भी जरूरत होती है। गर्म एरिया जहां पहले ही पानी की कमी होती है, वहां कॉटन बनता है। यहां चाइना के बाद इंडिया नंबर पर आता है। सिमिलर कॉटन तो व्हाइट होता है लेकिन आपके कपड़े अलग अलग कलर्स में आते हैं। कपड़े बनाना एक हाइली पॉलिशिंग स्टेप होती है जिसमें वॉशिंग, ब्लीचिंग, डाइंग जैसे कई सारे प्रोसेस होते हैं।

हमारी दुनिया के लिए हानिकारक क्यों होते हैं? एक छोटा सा एग्जांपल देती हूं। पानी के नीचे इकोसिस्टम होता है। पौधे होते हैं, जिन्हें मछलियां खाती हैं और छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां खाती हैं। कपड़े धोने पर अपने ऑब्जर्व किया होगा कि पानी कितना डार्क हो जाता है। अगर यही पानी बिना किसी प्रोसेस के वॉटर बॉडी में गया तो यह काला पानी वॉटर बॉडीज को भी धीरे धीरे काला कर देता है, जिससे सनलाइट प्लांट्स तक नहीं पहुंच पाता, फोटोसिंथेसिस नहीं कर पाते और प्लांट्स की संख्या कम हो जाती है। प्लांट सिर्फ मछलियों का खाना नहीं होते, वो ऑक्सीजन भी देते हैं। पानी में होने वाले प्लांट्स कम हो जाते हैं तो पानी में होने वाला ऑक्सीजन भी कम होता है। टेक्सटाइल टॉक्सिक होते हैं, उनमें कार्सिनोजेन होते हैं। डाइंग के प्रोसेस में डाई कपड़ों से बाइंड नहीं होते और पानी में मिक्स हो जाता है। यह वेस्ट वॉटर कोई पीता नहीं, लेकिन खाता जरूर है। क्या हम वेस्ट वाटर को खाते हैं? क्योंकि ऐसा वेस्ट वॉटर अक्सर इरिगेशन के लिए यूज होता है। यानी यह टॉक्सिक कार्सिनोजेन हमारे खाने के थ्रू हमारे ही बॉडी में पहुंचते हैं। सेम टाइम जब कंपनी कपड़े जलाते हैं, तो उससे होने वाले एमिशन भी हवा को दूषित करते हैं। आजकल सारे कपड़े पॉलिएस्टर से बनते हैं, जो एक मैनमेड फाइबर है।

पॉलिएस्टर से बनता है क्रूड ऑयल। तो जब ये कपड़े जलते हैं तो इनडायरेक्टली वो क्रूड ऑयल जलाने जैसा ही होता है। बाहर से सुंदर दिखने के लिए हम अंदर से बर्बाद हो रहे हैं। यही सच है। चैप्टर फोर कंक्लूजन इस विडियो का पॉइंट आपको शॉपिंग करने से रोकना नहीं है। ये सारे पैसे आपके पैसे। आपने मेहनत से कमाए हुए पैसे तो इन्हें कैसे खर्च करने चाहिए यह बताने वाले हम कौन होते हैं? विश्व स्पेंड मनी थिंग टू फैशन, मैटर्स टू यू स्पेंड मनी फैशन, इस टोटली फाइन। लेकिन आपके कुछ छोटे से स्टेप्स आपका एनवायरनमेंटल इम्पैक्ट कम कर सकते हैं। जैसे कि अगर आप आपके कपड़े 6 से 9 महीनों के लिए ज्यादा यूज करते हैं तो आप उन कपड़ों की वजह से होने वाला एनवायरमेंटल डैमेज 30 पर्सेंट से कम करते हैं। यानी हमें।

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